स्पॉटलाइट: भारत नहीं खरीदेगा मांसाहारी गाय के दूध से बने प्रोडक्ट – ट्रम्प बना रहे हैं दबाव, क्या हैं शर्तें?
नई दिल्ली: भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अपनी नैतिक और धार्मिक प्राथमिकताओं को स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह मांसाहारी गायों के दूध से बने उत्पादों को स्वीकार नहीं करेगा। यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत पर डेयरी उत्पादों को लेकर दबाव बना रहे हैं।
भारत की आपत्ति क्यों?
भारत में बड़ी संख्या में लोग शाकाहारी हैं और गाय को पवित्र माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस गाय को मांसाहारी चारा खिलाया गया हो, उसका दूध और उससे बने उत्पाद भी “अपवित्र” माने जाते हैं। इसी कारण भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह केवल शुद्ध शाकाहारी आहार पर पाली गई गायों के दूध से बने उत्पाद ही आयात करेगा।
अमेरिका से क्या है विवाद?
अमेरिका में अधिकतर गायों को पोषणयुक्त मांसयुक्त चारा (जैसे फिश मील, बोन मील) दिया जाता है। भारत ने कई बार यह मांग उठाई है कि ऐसे डेयरी प्रोडक्ट्स की स्पष्ट जानकारी दी जाए।
हाल ही में ट्रम्प की टीम ने अमेरिका में बनी डेयरी कंपनियों के उत्पादों को भारत में बेचने के लिए व्यापार समझौते में रियायत मांगी है। पर भारत का रुख स्पष्ट है – “धार्मिक आस्था से समझौता नहीं होगा।”
भारत की प्रमुख शर्तें क्या हैं?
- केवल शाकाहारी गायों से प्राप्त दूध को ही भारत में प्रवेश मिलेगा।
- प्रत्येक प्रोडक्ट पर “Vegetarian Source” का प्रमाणपत्र जरूरी होगा।
- Halal या अन्य वैकल्पिक फॉर्मेट का दूध भी केवल प्रमाण के साथ स्वीकार होगा।
- भारत सरकार प्रत्येक खेप की जांच और सैंपलिंग का अधिकार सुरक्षित रखेगी।
ट्रम्प का दबाव और भारत की प्रतिक्रिया
ट्रम्प प्रशासन का कहना है कि यह मांग व्यापार में भेदभाव की श्रेणी में आती है, लेकिन भारत ने इसे धार्मिक-सांस्कृतिक मुद्दा बताते हुए WTO (विश्व व्यापार संगठन) में भी समर्थन पाने की तैयारी की है। भारत का यह भी कहना है कि अमेरिका भी अपने “Halal मांस” या “Organic Products” को प्रमोट करता है, तो फिर भारत की भावनाओं का भी सम्मान होना चाहिए।
क्या होगा इसका असर?
अगर भारत अपने रुख पर कायम रहता है, तो अमेरिकी डेयरी कंपनियों को अपने प्रोडक्शन प्रोसेस बदलने होंगे या भारतीय बाजार से पीछे हटना पड़ेगा। यह भारतीय बाजार में देसी कंपनियों के लिए अवसर भी बन सकता है।
Uttam News की राय:
भारत का यह फैसला न केवल धार्मिक मान्यताओं की रक्षा करता है, बल्कि उपभोक्ताओं को उत्पाद की पारदर्शिता भी सुनिश्चित करता है। यह बहस केवल दूध की नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता और वैश्विक व्यापार नैतिकता की भी है।
लेखक: Jn Arjun Yadav | स्रोत: अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्रालय, अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स
