महंगी दवाइयों का सच: Generic दवा क्यों नहीं लिखते डॉक्टर?

ब्रांडेड दवाइयों के नाम पर गरीबों की लूट: डॉक्टर कितने जिम्मेदार?

ब्रांडेड दवाइयों के नाम पर गरीबों की लूट: डॉक्टर कितने जिम्मेदार?

लेखक: Uttam Gurukul | स्वास्थ्य जागरूकता हिंदी में


🩺 परिचय

भारत जैसे देश में जहाँ करोड़ों लोग रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करते हैं, वहाँ बीमारी किसी आर्थिक तूफान से कम नहीं होती। लेकिन उससे भी बड़ी समस्या है — इलाज के नाम पर लूट। और इसमें सबसे बड़ा हथियार बनती है महंगी ब्रांडेड दवाइयाँ

💊 ब्रांडेड दवाइयाँ: क्यों महंगी होती हैं?

ब्रांडेड दवाइयाँ किसी कंपनी के नाम पर बेची जाती हैं। जबकि Generic दवाइयों में वही दवा होती है – फर्क सिर्फ नाम और पैकिंग का होता है।

उदाहरण: Crocin = Paracetamol

😠 डॉक्टरों की भूमिका: मजबूरी या मिलीभगत?

  • कई डॉक्टरों को ब्रांडेड कंपनियाँ कमीशन और गिफ्ट देती हैं।
  • डॉक्टर वही महंगी दवा लिखते हैं जो मरीज की पहुँच से बाहर होती है।
  • Generic दवा होते हुए भी मरीज को ब्रांडेड दवा लेनी पड़ती है।

🔴 Paracetamol 500mg की Generic दवा ₹1 में मिलती है, लेकिन डॉक्टर ₹10 की Crocin लिखते हैं – 10 गुना फर्क!

💔 गरीब मरीजों की असली तकलीफ़

दिहाड़ी मजदूर ₹300 कमाता है और इलाज पर ₹800 खर्च हो जाए तो क्या वो फिर से डॉक्टर के पास जाएगा?

  • दवा अधूरी छोड़ देता है
  • इलाज रुक जाता है
  • बीमारी बढ़ जाती है

🏥 जन औषधि केंद्र: सस्ता इलाज लेकिन कम जानकारी

भारत सरकार ने Jan Aushadhi Kendra शुरू किए हैं जहाँ सस्ती Generic दवाइयाँ मिलती हैं। लेकिन:

  • डॉक्टर इसका नाम नहीं लिखते
  • मरीज को जानकारी नहीं होती
  • Medical स्टोर वाले मुनाफे के लिए ब्रांडेड दवा बेचते हैं

💡 समाधान क्या है?

  • डॉक्टरों को Generic नाम लिखना अनिवार्य किया जाए
  • जनता को जागरूक किया जाए कि वह पूछे – “Generic दवा है क्या?”
  • जन औषधि केंद्रों की संख्या और प्रचार बढ़ाया जाए
  • ऑनलाइन सस्ती Generic Pharmacy को बढ़ावा दिया जाए

📣 एक सवाल आपसे:

क्या इलाज अब एक सेवा नहीं, व्यापार बन गया है?
क्या डॉक्टर और फार्मा कंपनियाँ मिलकर गरीबों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं?

👉 अगर आप भी मानते हैं कि ये गलत है, तो जानकारी फैलाइए और बदलाव की शुरुआत कीजिए।

✅ निष्कर्ष (Conclusion)

Generic और Branded दवाओं में असर लगभग बराबर होता है। लेकिन गरीबों को ब्रांडेड दवाओं के नाम पर लूटा जा रहा है – और ये तब तक चलेगा जब तक जनता सवाल नहीं पूछेगी।

अब वक्त है बदलाव का – Generic दवा अपनाइए, पैसे बचाइए और जान बचाइए।


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